करिया.....
कालिया......
पूरा 8 साल हो गया मास्टर जी लगातार गांव के चक्कर लगा रहे थे
बीटेक की पढ़ाई करके भी पढ़ाने का चस्का जाग उठा था ,प्राथमिक विद्यालय में प्राइमरी मास्टर के पद पर नियुक्त हो गए.
शहर से सुबह 3:30 4:00 बजे की ट्रेन पकड़ते और जैसे तैसे गांव पहुंच जाते हैं जाना तो दूर-दूर तक कोई घर मिलता और ना ही सड़कें मिट्टी के रास्ते को ही अपना रास्ता समझ कर आगे बढ़ते रहते हैं....
निराशा तो तब होती जब विद्यालय जाकर दो बच्चे भी
ना मिलते....
पूरा गांव ऐसे देखता हूं जैसे मानो शहर का कोई कलेक्टर आया हो.....
बड़ा असहज महसूस करते.....
आखिर करके भी क्या सकते थे ड्यूटी है करनी तो पड़ेगी..
लगातार गांव के चक्कर लगाते और नई नई रोचक जानकारियों को गांव तक पहुंचाते हैं ताकि कोई मां-बाप बच्चे को विद्यालय में भेज दे
अथक परिश्रम के बाद थोड़ी सी सफलता मिली...
दाखिला के लिए आज रविवार निर्धारित किया गया
वैसे तो रविवार को सामूहिक अवकाश होता किंतु मैंने मास्टर साहब थे और जोश से भरे हुए थे देश के लिए कुछ करना चाहते थे
जैसे ही विद्यालय पहुंचे बच्चा अपनी मां के पल्लू में छुप गया
आंखों में कीचड़ बहती हुई नाक जो सीधे होठों तक आ रही थी मिट्टी में सनी हुई कमीज पहने...
मास्टर जी ने कहा ,"क्या नाम है इसका?"
"हम तो एखा कलुआ कह के बुलावत है, आप जो चाहो रखे देव" दबी हुई आवाज में पिता ने बोला...
मास्टर जी ने निहारा उस बच्चे को पल्लू के पीछे जैसे उसने सीख लिया हो पहला पाठ भेदभाव विद्यालय की दहलीज पर ही
कलुआ?? पर कलुआ क्यों मास्टर जी उसकी तरफ देख कर बोले
मुस्कुरा कर बोले "आशीष"
आशीष नाम है आज से इसका, कैसा है?
दोनों युवक युवती एक दूसरे को ऐसे देखें मानो किसी ने उन्हें एक मंजिल दिखा दी हो
मुस्कुरा रहा था वह पहली बार...
रंगभेद के कैद से निकलकर.....
चमक रहा था वह...... तेज...... बहुत तेज
जीत लेने को...... जहां सारा
और देखता रहा मास्टर जी को एकटक.....
लगातार देख पाता वह जब तक......
जाते समय भोली मां पैर छू जैसे ही आया वह प्यार को छूने......
लगा लिया मास्टरजी ने उसे गले से सिर पर हाथ फिराया और बोले कल से आ जाना....
आंखों में चमक थी उसके और थोड़ा पानी भी
आंखों में चमक थी उसके और थोड़ा पानी भी क्योंकि अब वह कलुआना रहा आशीष हो गया
एक नया रास्ता उसका इंतजार कर रहा था...
एक नया सपना जोश का विस्तार करने जा रहा था...
एक नई कहानी जो उसे दुनिया के बारे में बताने जा रही थी
एक नया कल जो उसके उड़ते हुए सूरज को और चमकाने जा रहा था
क्योंकि आशीष अब स्कूल आने वाला था
शिक्षा एक समुंदर की तरह है जिसको जितना पियो उतना कम है किंतु जैसे से पीते जाएंगे समुंदर की गहराई का अंदाजा लगता जाएगा!
उमेश मिश्रा.