जरा संभल के बोलना इन्हें कहीं कर ना दे वार!
मार की चोट से ज्यादा शब्दों की चोट होती है गहरी
पाला था जिसने बड़ी मुसीबतों से अपने लाल को, पल में बोला वाह "क्या किया है तूने मेरे लिए"?
पैरों से जमीन खिसक गई उसकी और दुआ की उसने यह सुनने के पहले वो क्यों न गई मैं बहरी!!
ना स्वर्ण मुद्राओं का लोभ है , ना कभी आया तेरे महलों का खयाल!
तेरे दो मीठे शब्द ही मेरा सम्मान है इसलिए बोलने से पहले अपने शब्दों को संभाल!!
परेशान है तू मैं जानती हूं भटक रहा है मैं मानती हूं
खो रही है मंजिले तेरी खत्म हो रही है हसरते तेरी
पर याद रख परिस्थितियां कैसी भी हो, बोल तेरे मीठे हो!
बोलो तुम बस प्यार से शब्द ,जो तुमने सीखे हो!
रास्ते फिर से बनेंगे मंजिलें फिर से मिलेंगी
धैर्य से तू काम ले थोड़ा सा तो विराम ले!
सोच के तू बोल, क्योंकि शब्द है अनमोल क्योंकि शब्द है अनमोल!
(उमेश मिश्रा)