हफ्ते का वह एक दिन जो देता था तमाम खुशियां ,याद है मुझे वह बचपन का दिन आज भी!!
ना स्कूल जाने की चिंता ना टीचर का डर, जब तक मन हो सोए रहो बेड पर!
याद करता हूं मैं वह शो जो कभी थे टेलीविजन की शान
कभी चित्रहार तो कभी शक्तिमान कभी कैप्टन व्योम ,कभी आर्यमान !
वो टायरों को डंडे से मारना, वह कंचे से कंचे को लड़ाना, दोस्तों से लड़ना झगड़ना रसोई में बने पकवानों को चुराना!!
सूरज का हफ्ते में बस एक दिन निकलना छतों पर कपड़ों को सुखाना
गलियों की वह धमाचौकड़ी, बच्चों द्वारा किया गया शोर ऐसा लगता था मानो कोई यार आया है
जब कैलेंडर देखा तो पता लगा आज रविवार आया है!