परिवर्तन जीवन का एक अतिमहत्वपूर्ण अंग है ! मनुष्य इस धरती का सबसे बुद्धिमान प्राणी है ,जिसने ना केवल प्रकृति के नियमो को बदलने की चेष्टा की बल्कि खुद को भी बदल दिया। खुद के स्वार्थ के लिए कुछ ऐसे परिवर्तन किये जिनके परिणाम प्रकृति के विरुद्ध साबित हुए, जनसँख्या में तीव्र वृद्धि के साथ जरूरतों में भी तीव्र वृद्धि हुई है किन्तु इसके इस कार्य के लिए सम्पूर्ण पर्यावरण को कीमत चुकानी पड़ी है। जिसका सीधा प्रभाव संपूर्ण जीवो पर पडा है एक छोटी सी घास से लेकर बड़े -बड़े पेड़ो पर मिटटी में उपयोग होने वाली यूरिया इनकी शक्ति को कर रही है। भारत देश एक कृषि बाहुल्य देश है जहा करीब करीब ७० %लोग कृषि से जुड़े हुए है। यद्यपि पर्यावरण के लिए कई ठोस कदम नहीं लिए जा रहे , जहां एक ओर धधकती हुई चिमनियों से निकालता हुआ धुआँ प्राकर्तिक सौन्दर्य को कलंकित कर रहा है दूूसरी ओर बढ़ती हुई आबादी जंगलो को खा रही है , इस विषय में हमें चिन्तन करना होगा कि हम इतनें स्वार्थी कैसे हो सकते है?
आश्चर्य तो तब होता है उच्च कुलीन और शिक्षित वर्ग के लोगों को मुंह पर मास्क एक स्टेटस हो गया है , किस सदी का भारत है ये जहां समस्या को हल करने के बजाय बच कर भागने मे लगे हुए है, राजधानी दिल्ली में AQI में पीएम 2.5 की मात्रा 400 के स्तर से अधिक दर्ज की गई है. यह गंभीर श्रेणी में आता है।तापमान में हो रही गिरावट और हवा की दति धीमी होने की वजह से हवा में प्रदूषकों की मात्रा बढ़ रही है.AQI ( Air Quality Index) और PM( Particulates Matter).
जहीरीली हवा हमें फेफड़े में जहर भर रही है ,ये आधुनिक युग नही इलेक्ट्रानिक युग है ,खाने से लेकर सोने तक , बल्कि शौच के समय भी हम मोबाइल का उपयोग कर रहे है जिस से उत्सर्जित होने वाली तरंगे हमारे मस्तिष्क को खोखला कर रही है फिर भी अनभिज्ञ है, आज कल के बच्चो को मोबाइल देना , उन्हें दूध पिलाने से भी ज्यादा जरूरी हो गया है इसी कारण जितने दिन वे खेलने नही जाते उससे ज्यादा दिन अस्पताल में गुजराते है, कई प्रकार की बीमारियों के तो नाम मै अब सुन रहा हूँ। बच्चे चश्मे के साथ पैदा हो रहें है क्या आपने कारण पता किया कि ऐसा क्यूँ हो रहा है ,इन सबका कारण भी हम सब है, खानपान में ब्राँण्ड का नाम ढूंढने की वजह हमारा स्वास्थ नान ब्रॉण्डेड हो रहा है!