ओ रे इन्सान क्यूं इतना इतरा रहा है तू अपनी तरक्की पर!1
तूने भले ही उङान भरना सीख लिया हो लेकिन आसमान पक्षियों का है!
तूने भले ही सङके बना ली हो लेकिन जंगल जानवरों का है!2
ना जाने कितने जहाज चला लिए हो तूने पानी में पर याद रखना समन्दर मछलियों का है!3
भूल गया है तू ये सब भी उसी विधाता की सन्तान है जिसने तुझे पैदा किया!
क्या कसूर है इनका जो तूने इनका सबकुछ छीन लिया!!4
मत भूल एक पिता के लिए उसकी हर सन्तान बराबर है जिस दिन वो रूठा तुझसे हिसाब ले लेगा !
उसकी एक नजर से ना जाने कितने दुःख तू झेलेंगा!!5
क्या कसूर है उन बेजुबानो का कि उनको उनके ही घर से भगा रहा!
अपने मनोरंजन के लिए अन्दर के शैतान को क्यू जगा रहा!!
क्या कसूर है उनका जो तू उन्हे इतना रूला रहा!!6
क्या कसूर है, क्या कसूर है????